लखनऊ।देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में एक दशक पहले तक भारतीय जनता पार्टी की ये हालत थी कि सत्ता का बनवास झेल रही थी।राम मंदिर आंदोलन के समय एक बार कल्याण सिंह की बदौलत उत्तर प्रदेश में भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला था।इसके बाद मायावती की बदौलत कुछ दिन तक सरकार चलाई,लेकिन उसके बाद सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और बसपा मुखिया मायावती के करिश्में के आगे भाजपा का एक भी करिश्मा काम न आया और लंबे समय तक सत्ता का बनवास झेलना पड़ा था।
ऐसी विषम परिस्थितियों में 2012 के चुनाव के बाद और 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश भाजपा में संगठन मंत्री सुनील बंसल एंट्री करते हैं। सुनील बंसल ने पूरे उत्तर प्रदेश की सियासी तस्वीर को बदलकर रख दिया। सुनील बंसल के नेतृत्व में भाजपा को चार चुनाव में उत्तर प्रदेश में बेहतरीन सफलता मिली थी।सूत्रों के अनुसार सुनील बंसल ने शीर्ष नेतृत्व से प्रदेश छोड़ने की इच्छा जाहिर की है।बैरहाल आलाकमान अभी यही चाहते है कि सुनील बंसल 2024 के चुनाव तक उत्तर प्रदेश में ही रुकें।
भाजपा सूत्रों की माने तो विधानसभा चुनाव से पहले ही इस तरह की खबरें सामने आ रहीं थीं कि चुनाव के बाद सुनील बंसल उत्तर प्रदेश भाजपा संगठन मंत्री के दायित्व से मुक्त हो जाएंगे। भाजपा की प्रचंड जीत के बाद सरकार बनी है उसमें सुनील बंसल के योगदान को कम कर नहीं आंका जा सकता है। सुनील बंसल ही वो शख्स थे जिन्होंने उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए गेमचेंजर होने की भूमिका निभाई है। इस दौरान सुनील बंसल तो आठ सालों तक अपने पद पर कायम रहे,लेकिन इस दौरान भाजपा को कई प्रदेश अध्यक्ष मिले। इसमें लक्ष्मीकांत वाजपेयी, महेंद्र नाथ पांडेय, केशव प्रसाद मौर्य, स्वतंत्रदेव सिंह ने सुनील बंसल के साथ काम किया। इनमें से कुछ प्रदेश अध्यक्ष ऐसे भी थे जिनके साथ सुनील बंसल की ट्यूनिंग सही नहीं रही,लेकिन इन चुनौतियों के बीच सुनील बंसल ने अपने रणनीतिक कौशल का बखूबी परिचय दिया।
भाजपा के लिए पिछले चार चुनाव से गेमचेंजर साबित होने वाले सुनील बंसल का विकल्प ढूंढ़ना इतना आसान भी नहीं है। भाजपा के कई नेताओं ने अंदरखाने बातचीत के दौरान यह स्वीकार किया कि सुनील बंसल की तरह संगठन मंत्री मिलना काफी कठिन है।कुछ लोगों का यह भी कहना है कि सुनील बंसल अभी चाहकर भी उत्तर प्रदेश को नहीं छोड़ पाएंगे।आलाकमान यह चाहता है कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव तक वह हर हाल में उत्तर प्रदेश में रहें,क्योंकि यह चुनाव भाजपा और मोदी दोनों के लिए काफी अहम है। इसलिए आलाकमान और संघ के शीर्ष नेतृत्व की मंशा के अनुरुप ही उनको चलना होगा।
सुनील बंसल भी अब उत्तर प्रदेश से विदाई ले सकते हैं। माना जा रहा है कि सुनील बंसल के लिए भी 30 अप्रैल तक की मियाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने तय कर दी है। इसके बाद भाजपा और संघ के बीच में पुल का काम करने वाला नया संगठन मंत्री उत्तर प्रदेश को मिलेगा। सुनील बंसल का भी उत्तर प्रदेश में अब 8 साल का समय बीत चुका है। भाजपा सुनील बंसल के रहते हुए चार चुनाव जीत चुकी है। दो लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्यादा सीटें दिलाने और उत्तर प्रदेश में लगातार दो बार भाजपा की सरकार बनवाने में सुनील बंसल का अहम योगदान है।
माना जा रहा है कि सुनील बंसल का दिल्ली का कई दौरा हो चुका हैं और 30 अप्रैल के बाद सुनील बंसल भी नई जिम्मेदारी संभाल सकते हैं।संगठन मंत्री एक ऐसा पद होता है जो संघ से प्रत्येक भाजपा प्रदेश संगठन को दिया जाता है। संगठन मंत्री के पद पर रहने वाला संघ और संगठन के बीच सेतु का काम करता है और महत्वपूर्ण निर्णय उसकी मोहर के बिना स्वीकृत नहीं किए जाते हैं।ऐसे में सुनील बंसल ने पिछले तीन चुनाव में भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभाई है और अब संघ और संगठन उनको और महत्वपूर्ण भूमिका में देखना चाहता है।इसलिए उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी संघ के किसी अन्य पदाधिकारी को दी जा सकती है।
भाजपा की तरफ से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उत्तर प्रदेश में भाजपा के चुनावी प्रदर्शन को लेकर एक रिपोर्ट भेजी गई थी। रिपोर्ट में भाजपा ने इस बात का जिक्र किया है कि चुनाव के दौरान अपना दल और निषाद पार्टी के साथ गठबंधन करना पार्टी के लिए फायदेमंद साबित नहीं हुआ। भाजपा की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन छोटे दलों का वोट भाजपा में ट्रांसफर नहीं हुआ जिसकी वजह से 2017 की तुलना में 2022 में भाजपा को 57 सीटें कम मिलीं। यदि भाजपा अपने दम पर चुनाव लड़ती तो 300 प्लस के अपने दावे को सच साबित कर सकती थी। भाजपा के एक नेता नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि बंसल जी ने इसकी भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी।बंसल जी अपना दल और निषाद पार्टी के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं थे। नतीजे आने के बाद बंसल जी ने कहा था कि इधर उधर के चक्कर में 50 सीटों का नुकसान हो गया।