संवाददाता: जमीर अहमद
रुदौली /अयोध्या :- रुदौली ब्लॉक क्षेत्र के ग्राम सभा पस्ता माफ़ी निवासी अनिल यादव जो आगामी पंचायती चुनाव मे प्रधान पद के भारी उम्मीदवार है उनका कहना है कि देश के विकास का रास्ता गांव की गलियों से होकर ही गुजरता है। गांव का जो रास्ता शहर की तरफ जाता है वही रास्ता गांव की तरफ भी आता है। लेकिन तमाम दावों, वादों और योजनाओं के बावजूद भी आज गांव की तरफ विकास अपना रुख नहीं कर पाया है। जिससे तरक्की का रास्ता और गुलजार हो सके, गावों में समृद्धि आ सके। सरकार बनाने में ग्रामीणों का विशेष योगदान होता है, लेकिन चुनाव के बाद गांव की तरफ शायद ही कोई जनप्रतिनिधि वहां आता हो। नेता अपने काम और जाति की दुहाई लेकर गांव में वोट मांगने जरूर आते हैं लेकिन विकास करने की बारी जब आती है तो ये नेता रफूचक्कर हो जाते है। भारत मुख्यतः गांवों का देश है, यहां की अधिकांश जनसंख्या गांवों में रहती है। आधे से अधिक लोगों का जीवन खेती पर निर्भर है, इसलिए इस बात की आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि गांव के विकास के बिना देश का विकास किया जा सकता है। इसी प्रकार जब सरपंच /प्रधानी का चुनाव आता है तो गाँवो की भोली भाली जनता उन अयोग्य उम्मीदवार की बातो व दिए गए चंद लालचो के चक्कर मे अपना बहुमूल्य वोट बिना सोचे समझें दे देते है और फिर गाँवो मे विकास ना होने की दुहाई देते रहते है और जीतने वाला उम्मीदवार भी कहता है आप ने वोट नहीं दिया आप ने बेचा है और हम ने आप का वोट खरीदा है ये एक सिस्टम बन चुका है जिसको बिना बदले गाँवो का विकास असंभव है हमारी सरकार गाँवो के विकास के लिए भरपूर बजट देती है परन्तु अयोग्य व अशिक्षित सरपंच चुने जाने पर कोई भी विकास कार्य ना कर फर्जी बिल या फर्जी कार्यों को दिखा दिखा कर धन का बन्दर बाँट हो जाता है फिर जनता सरकार को कोसती है! इन सभी सिस्टम को कोई नहीं बदल सकता अगर कोई बदलाव कर सकता है तो वह सिर्फ गाँवो की जनता हि परिवर्तन ला सकती है!
गांधी जी ने कहा था – अगर आप असली भारत को देखना चाहते है तो गांवों में जाइये क्योंकि असली भारत गांवों में बसता है। आर्थिक सामाजिक जातिगत सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक फिलहाल देश में कुल 73.44 फीसदी परिवार ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं। इस आधार पर गांव में विकास ज्यादा होना चाहिए जो कि नहीं हो सका। आज भी बहुत सारे गांव में स्कूल, अस्पताल, स्वच्छ पीने के पानी की व्यवस्था, सिंचाई के साधन, खेती खलियान कृषि, छोटे उद्योग जैसी मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है। इन सबको ठीक करने के लिए सभी सरकारों के साथ साथ सरपंचो की भी जिम्मेदारी है। गांव के विकास के लिए प्रधान की न कोई योजनाबद्ध प्रणाली है और ना ही विकास कार्यों को लेकर इच्छाशक्ति दिखाई देती है। गाँवो मे इलाज के लिए जनता को आज भी झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे ही रहना पड़ता है। देश में कई ऐसे गांव है जहां आज भी पीने के पानी के लिए सिर पर पानी उठाकर लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। समस्याएं तमाम है लेकिन क्या ये जिम्मेदारी सिर्फ सरकार, प्रशासन, या जिला पंचायत की ही है। अगर ये जिम्मेदारी ग्राम प्रधान उठा लें कि हमें हमारे गांव में विकास की गंगा बहानी है तो ये संभव है।