12सौ साल पहले कन्नौज के “राजा भोज” ने करवाया था जंगली देवी मन्दिर का निर्माण…

चैत्र नवरात्र विशेष षष्टम दिवस – कात्यानी माता

प्राचीन जंगली देवी (वनदेवी) मंदिर)-एम ब्लॉक,किदवई नगर कानपुर

12सौ साल पहले कन्नौज के “राजा भोज” ने करवाया था जंगली देवी मन्दिर का निर्माण…

– कात्यायनी रूप धरि जगमाहीं, जंगलीदेवी अंग समाहीं –
जंगली देवी में बरसेगा आज माता का खजाना –

मां के कात्यानी रूप के पूजन से मिलता है सुयोग्य वर

– क्रॉसर- पान सुपारी ध्वजा नारियल संग चुनरी चढ़ाने से होती है प्रसन्न

कानपुर । देवी देवताओं की स्थली भी अत्यंत पवित्र एवं पूर्णिमा ही होती है मंदिर निर्माण के पूर्व भूमि शोधन होता है भूमि पूजन तथा यज्ञ होता है कर्मकांडी ब्राह्मणों द्वारा भूमि के कण-कण के परिष्कार तथा पवित्रीकरण के लिए सप्ताह से लगातार मां मासांत तक तथा मंत्र उच्चारण एवं अन्य धार्मिक क्रियाकलाप संपन्न किए जाते हैं।
आदिशक्ति मां जंगली देवी की उत्पत्ति अत्यंत रहस्यमई है अनेक वृद्धजनों का कहना है कि हम लोगों के पूर्वज कहां करते थे की इस क्षेत्र में बहुत घना जंगल था तथा इसी देवी मंदिर के पास ही एक अत्यंत रमणीय सरोवर था जो शांत पवित्र स्वच्छ एवं सुंदर वातावरण के कारण उस स्थान को तपोवन जैसा बना देता था भारतीय ऋषियों व मनीषियों ने अपनी साधना हेतु शांति व प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर पवित्र स्थल चुनने की परंपरा बनाई जिससे उनका चिंतन निर्बाध गति से चल सके संभवत इसी धारणा से इसी तपोवन में अनेक तपस्वी महात्मा तपस्या किया करते थे इस पावन स्थल की जमीन कंकरीली अथवा उबड़ खाबड़ नहीं थी तथा उक्त सरोवर के घाट सब ओर से बराबर थे सेवार का तो उसमें नाम भी नहीं था। सरोवर का तलहट बालूकापूर्ण था। कमल उस सरोवर की शोभा बढ़ाते थे, एक दूसरे प्राणी को देखकर कोई भय महसूस नहीं करते थे,क्योकि वे हिंसा से अपरिचित थे।इसी तपोवन में अनेक तपस्वी महात्माओं ने समाधियां भी ली थी।इस प्रकार यह स्थान एक बहुत बड़ी तपस्थली बन गया।
कानपुर नगर के दक्षिणी क्षेत्र किदवई नगर का यह भाग जहां श्री जंगली देवी मंदिर का भव्य है कालांतर में यह भूभाग कान्यकुब्ज(कन्नौज)
प्रदेश के अंतर्गत स्थित था तथा कालिंजर मंडल राज्य की अंतिम सीमा भी इसी भू-भाग के आस-पास रही होगी। यह भाग-वनश्री से सुशोभित एवं नाना प्रकार के प्राकृतिक सौंदर्य से भली-भांति समलंकृत था। वनश्री मनोहारी सुषमा के बीच स्थित था। वनश्री (श्री दुर्गा जी का मंदिर) का मंदिर प्राचीनता एक ताम्रप्लेट पर अंकित तिथि से भलीभांति स्पष्ट हो जाती है इस ताम्रप्लेट पर विक्रम संवत ८९३ अर्थात सन ८३६ अंकित है। इस प्लेट पर अंकित लेख से यह ज्ञात हो जाता है कि सम्राट भोज देव ने इस वन श्री मंदिर के लिए आर्थिक अनुदान प्रदान किया था।

यह ताम्रप्लेट बाकरगंज के प्रसिद्ध नागरिक मोहम्मद बकर को अपने ही घर का निर्माण कराते समय 17 मार्च 1925 को प्राप्त हुई थी।जिसे उन्होंने पुरातत्व विभाग लखनऊ को भावी अनुसंधान एवं कार्यवाही के लिए सौंप दिया था। इन्हीं मोहम्मद बकर के नाम से ही बाकरगंज मोहल्ला प्रसिद्ध है। विभाग के भाषाविदों ने उसका अनुवाद संस्कृत एवं अंग्रेजी में कर भी लिया। क्योंकि यह ताम्रप्लेट बाकरगंज के क्षेत्र में प्राप्त हुई अतः यह बात अनुमानतः प्रमाणित हो ही जाती है कि वनश्री देवी का भू-भाग इसी के आस-पास स्थित किसी वन प्रदेश अथवा जंगली भाग में रहा होगा और कालान्तर में वह जंगली देवी के नाम से प्रसिद्ध है

12सौ साल पहले कन्नौज के राजा भोज ने करवाया था मन्दिर का निर्माण….

इस मंदिर में लगी ताम्रप्लेट का कानपुर के दक्षिणी क्षेत्र में प्राप्त होना यह तो प्रमाणित करता है कि राजाज्ञा के रूप में यह ताम्रप्लेट मंदिर के किसी ब्राह्मण पुजारी के पास रही होगी जो वर्तमान बाकरगंज के समीप ही स्थित किसी ग्राम अथवा बस्ती में रहा होगा। कालांतर में वह ग्राम या बस्ती किसी कारण ध्वस्त हुई होगी और मंदिर के पुजारी के पास संग्रहित यह राजाज्ञा भूमि में कहीं दब गई होगी। वहीं ताम्रप्लेट में राजा भोज देव का नाम अंकित है जो लगभग 12 सौ वर्ष पूर्व राज्य करते थे।
पुरातत्व विभाग की अवधारणा है कि राजा भोजदेव के पूर्वज देवी के भक्त थे और कभी ना कभी उनमें से कोई पूर्वज तब उधर से निकले होंगे तो इस वनश्री को देखकर मुग्ध हुए होंगे और यहां पर उन्होंने वनश्री देवी (दुर्गा देवी) का मंदिर बनवा कर अपने महोदय(कैंप कार्यालय) को इसकी समुचित व्यवस्था का भार सौंप दिया होगा

पुरातत्व विभाग ने भी माना कि एक सदी प्राचीन है वह देवी का मंदिर…

पुरातत्व विभाग के कथनानुसार प्राचीन अभिलेखों में “महोदय” राजा का कैंप कार्यालय माना जाता था कैंप का कार पर्यायवाची महोदय शब्द था और महोदय में राज्यव्यवस्था या संचालन हेतु कोई ना कोई कार्यालय होता था। महोदय को कन्नौज या कान्यकुब्ज राज्यखंड कहा जाता था। अतः ताम्रप्लेट में महोदय या कन्नौज खंड के अंतर्गत इस शब्द का प्रयोग विधि विधान के अनुसार उचित ही हैं।वनश्री मंदिर (दुर्गा देवी) महोदय अर्थात) कन्नौज या कान्यकुब्ज शासन खंड की व्यवस्था में था और राजाज्ञा के अनुसार महोदय कार्यालय ने ताम्रप्लेट खुदवा कर प्रमाण के लिए पूजा व्यवस्था के लिए नियुक्त ब्राह्मण पुजारी को दे दी होगी। जो कि लगभग
12 सौ वर्ष पश्चात इसी क्षेत्र में खुदाई में प्राप्त हुई। अतः प्रमाणित किया जाता है कि वनश्री अर्थात श्री दुर्गा देवी का यह मंदिर एक प्राचीन मंदिर है वन को जंगल भी कहते हैं समय परिवर्तन के साथ वनश्री देवी को जनसाधारण की आम भाषा में जंगली देवी कहना प्रारंभ हुआ और अब यह श्री जंगली देवी के ही नाम से पूरे क्षेत्र में विख्यात है। अयोध्या के सिद्ध संत श्री 1008 स्वामी बाबा राम मंगलदास जी ने भी श्री जंगली देवी मंदिर की सिद्ध भूमि को अपने ध्यान शक्ति से एक अत्यंत पुण्यशीला सिद्धपीठ के रूप में देखा। उनसे भगवती मां श्री अन्नपूर्णा ने यहां अपने जाज्वल्यमान विग्रह की स्थापना के लिए आदेश दिया। भगवत स्वरूप श्री महाराज बाबा राम मंगलदास द्वारा अन्नपूर्णा माता के विग्रह कि इसी सिद्ध पीठ में स्थापित हुई। श्री भगवती जंगली देवी।

— क्या है इस दरबार की मान्यता
फ़ोटो – पंडित विजय पाण्डेय- ज्योतिषाचार्य
प्रबंधक व प्रधान पुजारी मां जंगली देवी मन्दिर

स्वर्ण आभा से युक्त माता जंगली देवी का स्वरूप अत्यंत सम्मोहित करने वाला है यह सिद्ध शक्ति पीठ है जहां भक्ति भाव से दर्शन करने आने वाले प्रत्येक भक्त को मां अपने वात्सल्य से निहाल करती है तो वही उसके समस्त संकटों से मुक्ति देती है यह अभयदात्री है इन्हें वन देवी के नाम से ख्याति मिली यह अति प्राचीन मंदिर है जो कि माँ बारा देवी की बहनों में एक है कालांतर में यह सिद्ध सन्यासियों किं तपोभूमि यज्ञ भूमि रहा है इस दरबार मे आने वाले भक्त पर कोई भी तंत्र मंत्र टोना टोटके का प्रभाव नही रहता माता का सिद्धि दात्री है इन्हें कुम्मड़े की बलि के साथ पान सुपारी ध्वजा नारियल संग चुनरी चढ़ाने से उनकी प्रशन्नता प्राप्त होती है ।

क्या है दरबार की मान्यता

इस दरबार की खास मान्यता है की शुक्र व शनि व रविवार व नवरात्त्र की सप्तमी अष्टमी व नवमी को माता के क्रमवार दर्शनों से समस्त अभीष्ट फलो किं प्राप्ति ह्यो जाती है ,और जिन कन्याओं का विवाह न होंरहा ह्यो वे नवरात्र में षष्टम दिवस आकर इनकी आराधना करें और यहां मिलने वाले मां के आशीर्वाद रूपी श्रृंगार सामग्री के आशीर्वाद से शीघ्र उनकी मुराद व सुयोग्य वर किं प्राप्ति ह्यो जाती है।

ज्योतिष गुरु पंडित विजय पाण्डेय ने बताया की षष्टम दिवस मां कात्यानी का इस दरबार में विशेष पूजन अर्चना होती है क्योंकि मां का स्वर्ण आभा युक्त कात्यानी रूप है जिनके आज दर्शन पूजन व उपासना करने से कुंवारी कन्याओं का शीघ्र विवाहिक योग बन जाता है साथ हीं सुयोग्य वर की प्राप्ति होजाती है साथ आज के हीं दिन वर्ष में एक बार माता ख भंडार से विशेष प्रसाद रूपऐ खजाने का वितरण होता है जिसे पाने के लिए कानपुर हीं नहीं बल्कि आसपास के जनपद से हजारों की संख्या में भक्त इस दरबार में भक्त आते है.।

संकट मुक्ति निवारण के लिए मां के पास स्थापित त्रिशूल में 3 नींबू का कीलन करने से सभी बाधाओं का ततकल शमन हों जाता है बसंत पंचमी को मन्दिर का वार्षिकोत्सव होता है। जिसमे देश भर से आने वाले मैया के भक्त मैया कि झलक पाने को वर्ष भर बेताब रहते है।

कैसा है मां का दरबार—

मां जंगली देवी जीर्णोद्धार सन १९८२ में हुआ यह प्रतिमा सीता जी द्वारा पूजित मूर्ति बघाई गांव में (वर्तमान किदवई नगर )में थी। जिसकी भाव भंगिमा बदलती रहती है। मां की मूर्ति के अतिरिक्त कृष्ण दरबार, शीतला माता, काली माता,हनुमान जी,संतोषी माता,भगवान शंकर लवकुश धाम, पंचमुखी हनुमान, भैरव जी का मंदिर, अन्नपूर्णा मंगला माता, दुर्गा जी, सरस्वती जी लक्ष्मी नारायण शेषशैया वाले, गायत्री माता, गणेश जी की प्रतिमायें है। राम दरबार दक्षिण में है। मंदिर के नीचे नाग रहता है। यहां नवनिर्मित नवग्रहों का मंदिर भी है। जंगली देवी माताजी का श्रृंगार दिन में दोबार सुबह व रात्रि में श्रृंगार होता है मास परायण श्री रामचरितमानस का पाठ होता रहता है। मंगल को सुंदरकांड का पाठ होता है, बृहस्पतिवार को राधाकृष्ण का कीर्तन, बुधवार को माताजी का कीर्तन होता है तथा इस स्थल का प्रबंधन माता के असीम भक्त प्रधान पुजारी व प्रबंधक ज्योतिष गुरु पंडित विजय पाण्डेय के निर्देशन में चल रहा है। यहां आयोजित सभी आयोजनो में सभी क्षेत्रीय भक्तों का विशेष सहयोग रहता है।

कैसे पहुँचे मां के धाम–

यह स्थल कानपुर सेंट्रल स्टेशन से लगभग 3 किलोमीटर दूर दक्षिण में किदवई नगर चौराहे के पास है यहां बस टेंपो कार स्कूटर एवं रिक्शा से पहुंचा जा सकता है।

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