संवाददाता- अजय पांडे विधानसभा फूलपुर प्रयागराज
प्रयागराज। विधानसभा उपचुनाव 2024 चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है वैसे-वैसे सियासी पारा भी चढ़ रहा है। भाजपा ने दीपक पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया है। साल 2024 लोकसभा के पहले फूलपुर सीट से केसरी देवी पटेल सांसद थीं इस चुनाव में उनकी जगह फूलपुर के विधायक प्रवीण पटेल को लोकसभा प्रत्याशी बनाया गया था और वह सांसद चुने गए थे इसके बाद इस फूलपुर विधानसभा सीट से केसरी देवी पटेल के बेटे दीपक पटेल को विधानसभा प्रत्याशी बनाया गया है। जो 2012 में बसपा के टिकट पर करछना से विधायक चुने गए थे। तब इनकी मां केसरी देवी पटेल प्रयागराज की जिला पंचायत अध्यक्ष भी थीं। 2017 में फिर से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन हार गए थे। उसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। फूलपुर उपचुनाव में कांग्रेस राजनीति की दोधारी तलवार की मार झेल रही है। सपा ने मुज्तबा सिद्दीकी को मैदान में उतारा है तो बसपा ने जितेंद्र सिंह पर दांव लगाया है। ऐसे में कांग्रेस के बागी सुरेश यादव ने भी पार्टी लाइन से हटकर ताल ठोक दिया है। जिसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने उन्हें नोटिस देकर जवाब मांगा और 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। कुल मिलाकर 12 उम्मीदवार यहां चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। फूलपुर तहसील की बाबूगंज,झूंसी, बहादुरपुर कानून गो सर्किल, सिकंदरा,फाजिला उर्फ कालूपुर, रामगढ़ कोठारी,सरायगनी,चैमलपुर, अतनपुर,पटवार सर्किल,नगर पंचायत मिलकर फूलपुर विधानसभा बनाती है। दीपक पटेल का नाम इस सीट पर काफी मायने रखता है क्योंकि क्षेत्र में उनकी सियासी पकड़ रही है। दीपक पटेल की मां केसरी देवी पटेल जो 2019 से 2024 तक फूलपुर लोकसभा सीट की सांसद रहते हुए क्षेत्र में विकास का कार्य किया है। बातचीत के दौरान दीपक पटेल ने कहा हमारे लिए विपक्ष कोई बड़ी चुनौती नहीं है।यह बयान क्षेत्र में उनके परिवार की मजबूत राजनीतिक विरासत को दर्शाता है। दरअसल पार्टी टिकट मिलने पर उन्होंने शीर्ष नेतृत्व का आभार जताया और कहा कि केंद्र और प्रदेश सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों और कानून व्यवस्था के मुद्दों को लेकर जनता के बीच में आए हैं। आगे उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा है जो उनकी उम्मीदों को और आगे बढ़ाता है। वहीं जानकारों का कहना है कि बसपा अपने दलित वोटरों को भी नहीं सहेज पा रही अधिकतर वोट भाजपा की ओर ट्रांसफर होता दिख रहा है। जबकि दलित वोटरों के दम पर बसपा सत्ता में शामिल होती रही या चुनाव परिणाम प्रभावित करती रही है। बसपा के अधिकतर नेता उसे चुनाव से पहले ही छोड़ गए ऐसे में इस बार बसपा कहीं भी चुनावी रण में मजबूती से खड़ी नहीं दिख रही।और बसपा की तरह सपा भी पीडीए के सहारे शोर मचा रही है। बहरहाल आने वाला वक्त बताएगा कि किसके माथे पर तिलक लगेगा और किसे मायूसी हाथ लगेगी।