वाराणसी।अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्। अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।। अर्थात जो भगवान शिव शंकर संतजनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए अवन्तिकापुरी उज्जैन में अवतार धारण किए हैं।अकाल मृत्यु से बचने के लिए उन देवों के भी देव महाकाल नाम से विख्यात महादेव जी को मैं प्रणाम करता हूं। इस मंत्र के साथ ही शिव की काशी में महाकाल के भस्म आरती की शुरूआत होती है।
देवाधिदेव महादेव नगरी काशी की हर बात निराली है।काशी में श्रद्धालु अब महाकाल की भस्म आरती के दर्शन कर सकेंगे। इसकी शुरूआत धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज की कर्मस्थली धर्मसंघ के मणिमंदिर ने सावन में कर दी है।काशी का यह पहला मंदिर है, जहां बाबा भस्म आरती से श्रद्धालुओं के लिए जागेंगे। राम दरबार के ठीक सामने विशाल मंडप के मध्य पांच फीट आकार वाले शिवलिंग पर महाकाल की भस्म आरती हो रही है। महाकाल की तर्ज पर होने वाली भस्म आरती सुबह चार बजे भोर में हर सोमवार को नियमित होगी। इसके बाद महादेव के महाकाल स्वरूप का दर्शन श्रद्धालुओं की संपूर्ण मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला रहेगा।
धर्मसंघ के महामंत्री जगजीतन पांडेय ने बताया कि काशी में तो संपूर्ण 33 कोटि देवी-देवताओं का वास है। इसलिए महाकाल की भस्म आरती की शुरूआत का निर्णय लिया गया। सावन के सोमवार से इसकी शुरूआत हो चुकी है। अब हर सोमवार को महाकाल की भस्म आरती होगी। आरती के दौरान भस्म तैयार करने से आरती पूर्ण होने तक उज्जैन के महाकाल मंदिर में होने वाली आरती की तरह ही सभी नियमों का पालन किया जाएगा।
जगजीतन पांडेय ने बताया कि धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज की कर्मस्थली पर निर्मित मणिमंदिर शैव और वैष्णव की एकता का प्रतीक है। मंदिर का निर्माण लगभग 43 हजार वर्गफीट में किया गया है। इसमें भगवान राम के दरबार के साथ ही शिव, शक्ति और पंचदेवों के दर्शन एक साथ होते हैं। 151 नर्मदेश्वर शिवलिंगों की कतार है। बगल में शिव परिवार और स्फटिक मणि के द्वादश ज्योतिर्लिंग, परिक्रमा पथ पर अगले हिस्से में सूर्यदेव व बाबा कालभैरव और पिछले हिस्से में एक तरफ गजानन तो दूसरी तरफ मां दुर्गा अभयदान की मुद्रा में कृपा बरसाती हैं। राम दरबार के बगल में मां अन्नपूर्णा की स्वर्ण प्रतिमा श्रद्धालुओं को धन-धान्य का वरदान देती हैं। मेंहदीपुर बालाजी भी श्रद्धालुओं का कष्ट हरते हैं।
धर्मसंघ पीठाधीश्वर स्वामी शंकर देव चैतन्य ब्रह्मचारी महाराज ने बताया कि शिवपुराण में बताया गया है कि जब सती ने शिव के अपमान के कारण दक्ष के यज्ञ में स्वयं को भस्म कर दिया तो भगवान शिव क्रोधित हो गए और अपनी चेतना में नहीं रहे। इसके बाद वो माता सती के मृत शरीर को लेकर इधर-उधर घूमने लगे। जब भगवान शिव को श्रीहरि ने देखा तो उन्हें संसार की चिंता सताने लगी। हल निकालने के लिए उन्होंने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से कई हिस्सों में बांट दिया था। जहां-जहां माता सती के अंग गिरे वो स्थान शक्तिपीठ के रूप में स्थापित हो गए। भगवान शिव को लगा कि कहीं वो सती का हमेशा के लिए ना खो दें, इसलिए उन्होंने उनके भस्म को अपने शरीर पर लगा लिया।
जानें कैसे तैयार होती है महाकाल की आरती के लिए भस्म
भस्म आरती महादेव को जगाने के लिए सुबह 4 बजे की जाती है। मणिमंदिर में होने वाली भस्म आरती में गाय के गोबर से बना कंडा, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर तैयार की गई भस्म का इस्तेमाल किया जाता है।मान्यता के अनुसार भस्म आरती देखना महिलाओं के लिए निषेध है। इसलिए कुछ देर के लिए आरती के समय उनको घूंघट करना पड़ता है।
होती है पांच आरती
मणिमंदिर में पांच आरती का आयोजन किया जाता है। भोर में चार बजे से भस्म आरती के बाद बाल भोग आरती, राग भोग आरती, सायं और शयन आरती होती है।